Sāṭhottarī Hindī-kavitā kī pravr̥ttiyāṃ

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Kitāba Mahala, 1987 - Hindi poetry - 174 pages

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1
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24
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38

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अज्ञेय अधिक अपनी अपने अर्थ अस्वीकार आज आधुनिक आधुनिकता इन इस इस प्रकार इसलिए इसी ईश्वर उस उसका उसकी उसके उसे एक ओर कर करता है करती करते हैं करने कवि कविता की कविता में कविताओं कवियों का काव्य किया किसी की कविता कुछ के बाद के लिए को कोई क्या क्योंकि गया है गयी चेतना जगदीश गुप्त जब जा सकता है जाता है जाती जीवन डॉ० तक तथा तरह तो था थी थे दिया दृष्टि नए नयी कविता नहीं है ने पर परन्तु परम्परा पृ० प्रवृत्ति फिर बात बिम्ब भारत भाव भाषा भी मन मानव में भी मैं यह यहाँ यही या युग ये रहा है रही रामदरश मिश्र रूप में वर्मा वह विद्रोह वे व्यक्ति शब्द सकती सभी समाज साठोत्तरी कविता सामाजिक साहित्य से स्थिति हम हर हिन्दी हिन्दी कविता ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होती

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