Pūrvī Pākistāna ke āñcala meṃ |
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अपनी अपने अब इलाहाबाद इस उत्तर प्रदेश उनकी उनके उनको उन्होंने उस उसका उसके उसको कई कभी कर करते थे करना करने कलकत्ते कवि कहते कहा का कि किया था किसी की कुछ के पास के बाद के लिये के साथ कोई गया था गयी गये थे गाँव घर चटगाँव जब जा जाता था जाते थे जिले जीवन जो ढाका तक तब तरह तीन तो था और था कि थी थीं थे और दिन दिया देश दो दोनों नदी नहीं नाम नारियल ने पद्मा पद्मारानी पर पाकिस्तान पारेरहाट पूजा पूर्व पूर्वी पाकिस्तान फिर बंग बंगदेश बंगाल बड़ा बड़ी बड़े बरीसाल बहुत बाबू भारत भी भोर मन मुसलमान में में एक मोर यह या रहा था रही रहे थे राज राजा राजू को रानी माँ राय रुपया ले लेकर लोग लोगों वह वहाँ वे सब समय साहब से स्टीमर हिन्दू ही हुआ हुई हुए है हैं हो गया होती होते