Rukegā nahīṃ saverā

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Hindī Sāhitya Saṃsāra, 1988 - Hindi fiction - 157 pages

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अजय अपने अब अभी आज आप आया इस उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और कभी कमली कर करते करने कह कहा का काम किया किसी की ओर कुक्कू कुछ के बाद के लिए के साथ को कोई क्या क्यों खेत खेतों गजेन्द्र सिंह गजेन्द्र सिंह ने गनपत गया था गयी गये गांव में गोविन्द घर चला जग्गू जब जा जाने जो ठीक तक तब तुम तो था कि थी दिन दिया दिल्ली दी दे देखा देबू देर दो नहीं ने पता पत्नी पर पहले फिर बलदेव बात बाबू बलजीत सिंह बाबू साहब बार बुधवा बोला बोले भी मन में मैं यह यहां या रमा रहा था रहा है रही रहे थे रामदीन लगा लगी लगे लिया ले लेकिन लोग लोगों वह वहां वे शहर सब सभी समय सिंह के से हम हाथ ही हुआ हुई हुए हूं है हैं हो गया होगा

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