Rādhā. [lekhaka] Jānakīvallabha Śāstrī, Volume 4 |
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अपने अब आकाश आग आज आत्मा आप इस उद्धव उन्हें उयों उर उस एक ओर और कभी कर करती कह कहाँ का कि किन्तु किया किसी की कुछ कृष्ण के को कोई कौन क्या क्यों खोल गई गए गगन गन्ध गया जब जल जा जीवन जो ज्ञान तुम तो था थी थे दिन दृष्टि दे देख दो न हो नयन नहीं नाम नारी ने पर पर्व पल पा पार पास पुरुष प्यार प्रणय प्राण प्रीति प्रेम फिर फूल बन बात बोल भर भाव भी भूल मत मन मुझे में मैं मौन यदि यह या रंग रहा रही रहीं रहे रा राधा राधिका रुक्तिणी रुविमणी रूप ले वह विनोद विश्वास व्यर्थ शान्त शिशुपाल शून्य सकता सका सब सहज सिर सुन से स्मृति स्वर हम ही हुआ हुई हुए है हैं हो न हों होगा होता ह्रदय