Racanānuvādaprabhā

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Sāhitya Bhaṇaḍāra, 1970 - Sanskrit language - 336 pages

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4
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१० ११ १२ १३ १४ १६ अथवा अन्तर अपने अभ्यास आदि इत्यादि इस इसी प्रकार एक एव और करता है करते हैं करना कर्म का प्रयोग कि किन्तु किया की कुछ के रूप के लिये के समान के साथ को क्रिया गया जा जैसे जो तत्र तथा तु तुम ते तो दो दोनों द्वितीया धातु के नपुं० नहीं नाम ने प० पर परे पाठ पुं० पुरुष प्र० प्रत्यय प्रत्ययान्त प्रथमा प्रा० भी भ्वा० में अनुवाद करो में भी यदि यह यहाँ या ये राम रूप होते हैं लकार के लङ् लट् लिखो लिट् लुङ् लुट् लृङ् लृट् लोट् वह वा वाक्यों वाले विधिलिङ् विभक्ति वे व्याकरण शतृ शब्द के शब्दों के शुद्ध श्रादि सः सन्धि समास संस्कृत संस्कृत में से स्त्री० हि ही हे हो जाता है होता है होती होते हैं होना

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