Ina dinoṃ

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Mukti Prakāśana, 1990 - Hindi poetry - 108 pages

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2
Section 2
13
Section 3
31

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अपना अपनी अपने अब आँखों आकाश आग आज आदमी इतिहास इन इस उस उसकी उसके उसे एक ओम प्रकाश ओर और कई कभी कर कविता कविताएं कहीं का कि किसी की तरह कुछ के बीच के लिए के साथ कैसे को कोई क्या क्योंकि खून गई गया है गये गुलाब चाँद चाहता जन्म जब जमीन जहाँ जाता है जाने जायेगा जो तक तथा तुम तुमने तुम्हारी तुम्हें तो था थी थे दिन दिया दे देश देह देहरादून धरती धूप नहीं नहीं है ने पत्र-पत्रिकाओं में पर पहाड़ पौष फिर भी बन बहुत बाहर बीज भी भीतर मन माँ मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यही या युद्ध ये रह रहा है रही रहे हैं रात रोटी रोड लगता है लगा लोग वह शक्ल शब्द शहर सफेद सब समय सा सिर्फ सी से हम हर हाथ ही हुआ हुए हूँ है और हो होता है होती होने

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