Jana kalyāṇa kā mūlamantra

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Krāntidūta-prakāśana, 1965 - Vedas - 127 pages

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5
Section 2
10
Section 3
25

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अध्याय अनुष्ठान अन्य अपनी अपने अर्थात् आदि इन इस इसका इसके इससे इसी ईश्वर उत्तम उपासक उपासना उस उसका उसकी उसके उसे ऋषि एक ऐसा ओ३म् और कर करके करता है करते हैं करना करने करे करें कर्म का अर्थ का नाम किया किसी की कुछ के लिए को कोई कोष क्योंकि गया गायत्री मंत्र चाहिए जगत् जप जब जाता है जाति जाती जाते हैं जाने जाप जीवन जो ज्ञान तक तथा तो था दयानन्द दुःख देश दो दोनों द्वारा ध्यान नहीं ने पर परमात्मा परमेश्वर प्र प्रकार प्राप्त भारत भाव भी भुवः मनु मनुष्य मानव में यदि यह यही या ये रक्षा रूप वह वाला वि विचार विशेष वे वेद शब्द सकता सदा सब समय साथ सुख से स्व स्वः स्वरूप हम ही हुए हे है और है कि हैं हो जाता है होता है होती होना होने

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