Maiṃ tumhārā svaraAn̄jali Prakāśana, 1965 - 150 pages |
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अगर अजमेर अपना अपनी अपने अब आँसू आज आया इस उदास एक ऐसा ऐसी और कभी कर का कितना किया है किसी की की तरह कुछ के कैसा कैसे को कोई क्या क्यों गगन गया गीत चेतना जब जाए जाता हूँ जाती है जाने ज़िन्दगी जीवन जैसे जो तक तुम तुम्हारा तू तेरी तेरे तो था दर्द दिन दुःख दे उपदेश देखा देश देह दो नई नया नहीं ने पर प्यार प्यास प्राण फिर भी बन बहुत बात भर भरा भारत मगर मन मुक्तक मुझको मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैं तो अपने यह यही यहीं या युग युद्ध यूं ये रहा रही रहे रात लिए लिया लिये ले लेकिन लो लोग वह वाली वाले विराट वे सत्य सब सभी सा साथ साथी सुख से स्वर हम हमने हमारी हमारे हमें हर हिमालय ही हुआ हुए हूँ हृदय है और है कि है मैंने हैं हो होगा