AKHAND BHARAT : SANSKRITI NE JODA, RAJNEETI NE TODA: Bestseller Book by Devendra Swarup: AKHAND BHARAT : SANSKRITI NE JODA, RAJNEETI NE TODA

Front Cover
Prabhat Prakashan, Jan 1, 2016 - Biography & Autobiography - 216 pages
हिदुत्व की विचारधारा बहुत उदार है, सहिष्णु है, अहिंसक है, शांतिप्रिय है, विविधतावादी है, सर्वसमावेशी है। ये गुण ही उसकी पहचान हैं। उसकी विशेषता हैं। उसकी शक्ति हैं; किंतु राजनीति से प्रेरित नकारात्मक मस्तिष्क ने मीडिया और शैक्षिक जगत् पर अपने वर्चस्व का दुरुपयोग कर हिंदुत्व के विरुद्ध ऐसा विषाक्त वायुमंडल पैदा कर दिया है, मानो संसार का सबसे खराब विचार-प्रवाह हिंदुत्व ही है। वोटबैंक की राजनीति का ही दुष्परिणाम है कि पंथनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक विकेंद्र्रीकरण के नाम पर सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ हिंदू समाज को जाति और क्षेत्र के नाम पर बाँट रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत को अखंड रखने के उपाय क्या हैं? अखंड भारत का रूप क्या होगा? उसका मार्ग क्या होगा? क्या इसका वस्तुपरक आकलन आवश्यक नहीं है? आदि यक्ष- प्रश्नों के उत्तर इस पुस्तक में खोजने की कोशिश की गई है।
 

Contents

Section 1
93
Section 2
95
Section 3
Section 4
Section 5
Section 6
Section 7
Section 8
Section 17
Section 18
Section 19
Section 20
Section 21
Section 22
Section 23
Section 24

Section 9
Section 10
Section 11
Section 12
Section 13
Section 14
Section 15
Section 16
Section 25
Section 26
Section 27
Section 28
Section 29
Section 30
Copyright

Common terms and phrases

अनेक अपनी अपने अब अयोध्या आज आधार इतिहास इन इस इसलिए इस्लाम उनके उन्हें उन्होंने उपासना उस उसका उसकी उसके उसे एक एकता एवं ओर और कर दिया करके करते करना करने के कहा का किंतु किया किसी कुछ के प्रति के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों गई गए गया है जा जाता है जीवन जैसे जो तक तमिलनाडु तो था थी थे देश द्वारा धर्म नहीं नहीं है नाम ने नेतृत्व न्यायालय पंजाब पर पहले पाकिस्तान पुराण पूर्व प्रत्येक बन बाद ब्रिटिश भारत की भारत में भारतीय भी मन मनुस्मृति महाभारत मुस्लिम में मैं यदि यह या यात्रा रहा है रही रहे हैं राजनीतिक रामायण राष्ट्र राष्ट्रगान राष्ट्रवाद राष्ट्रीय लिया वह वाले वे शब्द श्रीलंका संस्कृति सन् सब सभी समय सरकार सांस्कृतिक सिंध सिख से स्वयं हम हिन्दुत्व हिन्दू समाज ही हुआ हुए है और है कि हैं हो होता होने

About the author (2016)

Devendra Swaroop

जन्म 30 मार्च, 1926 को कस्बा कांठ (मुरादाबाद) उ.प्र. में। सन. 1947 में काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय से बी.एस-सी. पास करके सन् 1960 तक राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता। सन् 1961 में लखनऊ विश्‍वविद्यालय से एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास) में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्‍थान। सन् 1961-1964 तक शोधकार्य। सन् 1964 से 1991 तक दिल्ली विश्‍वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज में इतिहास का अध्यापन। रीडर पद से सेवानिवृत्त। सन् 1985-1990 तक राष्‍ट्रीय अभिलेखागार में ब्रिटिश नीति के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद‍् के ‘ब्रिटिश जनगणना नीति (1871-1941) का दस्तावेजीकरण’ प्रकल्प के मानद निदेशक। सन् 1942 के भारत छोड़ाा आंदोलन में विद्यालय से छह मास का निष्कासन। सन् 1948 में गाजीपुर जेल और आपातकाल में तिहाड़ जेल में बंदीवास। सन् 1980 से 1994 तक दीनदयाल शोध संस्‍थान के निदेशक व उपाध्यक्ष। सन् 1948 में ‘चेतना’ साप्‍ताहिक, वाराणसी में पत्रकारिता का सफर शुरू। सन् 1958 से ‘पाञ्चजन्य’ साप्‍ताहिक से सह संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते संबद्ध। सन् 1960 -63 में दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ लखनऊ में उप संपादक। त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘मंथन’ (अंग्रेजी और हिंदी का संपादन)।

विगत पचास वर्षों में पंद्रह सौ से अधिक लेखों का प्रकाशन। अनेक संगोष्‍ठ‌ियों में शोध-पत्रों की प्रस्तुति। ‘संघ : बीज से वृक्ष’, ‘संघ : राजनीति और मीडिया’, ‘जातिविहीन समाज का सपना’, ‘अयोध्या का सच’ और ‘चिरंतन सोमनाथ’ पुस्तकों का लेखन।

Bibliographic information